Additional information
Weight | 0.340 kg |
---|---|
Dimensions | 21 × 13 × 3 cm |
ISBN | 978-8194540823 |
PAGES | 421 |
AUTHOR | RAMAKANT MISHRA & SABA KHAN |
SERIES | MAHASAMAR |
Original price was: ₹399.00.₹349.00Current price is: ₹349.00.
वह एक पत्रकार था। अपने पेशे के प्रति समर्पित कर्मठ पत्रकार। जो अपने अखबार के संपादक के निर्देश पर एक गुप्त अभियान पर था। एक ऐसे अभियान पर जिसका मकसद हंगामा खड़ा करना था। ये एक ऐसा अभियान था जिसमें या तो झूठ का पर्दाफाश करना था या सच को झूठ साबित करना था। एक दुर्घटना को एक घोटाला साबित करना था या फिर उसे संदेह के दायरे में लाना था। और उस अजीबोगरीब अभियान पर काम करने के दौरान कब एक रहस्यमय स्नाइपर, एक फौजी, एक प्राइवेट जासूस, एक अंतर्राष्ट्रीय ठग, एक अंतर्राष्ट्रीय अपराधी, एक अंतर्राष्ट्रीय सुपारी किलर एवं एक नामचीन उद्योगपति के साथ-साथ देश की सभी सुरक्षा एजेंसियों सहित सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक के कई धुरंधरों का दखल बन गया, इसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी। उसको तनिक भी आभास नहीं था कि उसकी आम प्रतीत होती साधारण सी स्टोरी एक ऐसे रक्तरंजित षड्यन्त्र का खुलासा करने वाली थी, जिसके दायरे में आकर न जाने क्या-क्या जला था और क्या-क्या जलने वाला था। उसने सिर्फ ‘समर’ तक ही इस संघर्ष की कल्पना की थी, लेकिन हालात उसे एक नए आयाम में ले गए और ये अब ‘समर’ नहीं था, बल्कि था– महासमर साज़िशों, घात-प्रतिघात, छल, फरेब, मानवता के क्रूर मुखौटों एवं अमानवीयताओं के सागरीय जल में डूबी एक ऐयारी एवं संत्रास भरी गाथा….. महासमर: परित्राणाय साधूनाम् कर्तव्य और स्वार्थ के मध्य महासंग्राम में भावनाओं और सरोकारों के अद्भुत संतुलन से पल-पल रोमांचित करता एक अद्वितीय कथानक।
Weight | 0.340 kg |
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Dimensions | 21 × 13 × 3 cm |
ISBN | 978-8194540823 |
PAGES | 421 |
AUTHOR | RAMAKANT MISHRA & SABA KHAN |
SERIES | MAHASAMAR |
वह एक पत्रकार था। अपने पेशे के प्रति समर्पित कर्मठ पत्रकार। जो अपने अखबार के संपादक के निर्देश पर एक गुप्त अभियान पर था। एक ऐसे अभियान पर जिसका मकसद हंगामा खड़ा करना था। ये एक ऐसा अभियान था जिसमें या तो झूठ का पर्दाफाश करना था या सच को झूठ साबित करना था। एक दुर्घटना को एक घोटाला साबित करना था या फिर उसे संदेह के दायरे में लाना था। और उस अजीबोगरीब अभियान पर काम करने के दौरान कब एक रहस्यमय स्नाइपर, एक फौजी, एक प्राइवेट जासूस, एक अंतर्राष्ट्रीय ठग, एक अंतर्राष्ट्रीय अपराधी, एक अंतर्राष्ट्रीय सुपारी किलर एवं एक नामचीन उद्योगपति के साथ-साथ देश की सभी सुरक्षा एजेंसियों सहित सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक के कई धुरंधरों का दखल बन गया, इसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी। उसको तनिक भी आभास नहीं था कि उसकी आम प्रतीत होती साधारण सी स्टोरी एक ऐसे रक्तरंजित षड्यन्त्र का खुलासा करने वाली थी, जिसके दायरे में आकर न जाने क्या-क्या जला था और क्या-क्या जलने वाला था। उसने सिर्फ ‘समर’ तक ही इस संघर्ष की कल्पना की थी, लेकिन हालात उसे एक नए आयाम में ले गए और ये अब ‘समर’ नहीं था, बल्कि था– महासमर साज़िशों, घात-प्रतिघात, छल, फरेब, मानवता के क्रूर मुखौटों एवं अमानवीयताओं के सागरीय जल में डूबी एक ऐयारी एवं संत्रास भरी गाथा….. महासमर: परित्राणाय साधूनाम् कर्तव्य और स्वार्थ के मध्य महासंग्राम में भावनाओं और सरोकारों के अद्भुत संतुलन से पल-पल रोमांचित करता एक अद्वितीय कथानक।