Additional information
Weight | 0.345 kg |
---|---|
Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
ISBN | 978-81-954438-5-7 |
PAGES | 302 |
AUTHOR | ALOK SINGH KHALAURI |
Original price was: ₹399.00.₹299.00Current price is: ₹299.00.
हिंदी पल्प फिक्शन ने कभी अपने सुनहरे दौर में पाठको के दिलों में खास जगह बनाई थी। लेकिन समय के साथ , यह शैली धीरे-धीरे अपनी चमक खोती चली गई।सिनेमा और टीoवीo की चुनौती का सामना तो किताबों ने कर लिया , लेकिन मोबाइल युग की नई चुनौती ने इसे झकझोर कर रख दिया।और इन सब के बीच ,सेल्फ पब्लिशिंग के रूप में एक नई समस्या उभर आई , जो इस पहले से जर्जर हो चुकी विधा के लिए किसी ज़हर से कम नहीं थी।
हालाँकि, सेल्फ पब्लिशिंग ने नए और प्रतिभाशाली लेखकों को साहित्यिक दुनिया में प्रवेश का रास्ता तो दिया , लेकिन उसी सरलता ने अयोग्य और कमजोर रचनाओं को भी साहित्यिक मंच पर ला खड़ा किया। इन साहित्यिक कलंकों ने पल्प फिक्शन की पहले से कमजोर गर्दन पर अपनी पकड़ और मजबूत कर दी। योग्य लेखक अपनी बेहतरीन रचनाओं को इस भीड़ में खोते देख रहे थे , पर कुछ कर नहीं पा रहे थे।
तभी साहित्य की इस डूबती नाव को बचाने के लिए सरदार अमरजीत सिंह मजीठिया नामक साहसी योद्धा ने मोर्चा संभाला। कहावत हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता , लेकिन अगर वह चना सरदार अमरजीत सिंह मजीठिया जैसा हो , तो परिणाम चौंकाने वाले होते हैं।
सरदार साहब ने अकेले ही ऐसा तहलका मचाया कि पल्प फिक्शन की दुनिया हिल गई।
इसी के साथ एक सिरफिरा क़ातिल भी अपनी कहानी लिखता रहता हैं।
‘प्रतारक’ इसी क्रांतिकारी सफर की कहानी हैं —कैसे सरदार अमरजीत सिंह मजीठिया ने साहित्यिक दुनिया में एक नया अध्याय लिखा और पल्प फिक्शन को नए जीवन की राह दिखाई।
Weight | 0.345 kg |
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Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
ISBN | 978-81-954438-5-7 |
PAGES | 302 |
AUTHOR | ALOK SINGH KHALAURI |
हिंदी पल्प फिक्शन ने कभी अपने सुनहरे दौर में पाठको के दिलों में खास जगह बनाई थी। लेकिन समय के साथ , यह शैली धीरे-धीरे अपनी चमक खोती चली गई।सिनेमा और टीoवीo की चुनौती का सामना तो किताबों ने कर लिया , लेकिन मोबाइल युग की नई चुनौती ने इसे झकझोर कर रख दिया।और इन सब के बीच ,सेल्फ पब्लिशिंग के रूप में एक नई समस्या उभर आई , जो इस पहले से जर्जर हो चुकी विधा के लिए किसी ज़हर से कम नहीं थी।
हालाँकि, सेल्फ पब्लिशिंग ने नए और प्रतिभाशाली लेखकों को साहित्यिक दुनिया में प्रवेश का रास्ता तो दिया , लेकिन उसी सरलता ने अयोग्य और कमजोर रचनाओं को भी साहित्यिक मंच पर ला खड़ा किया। इन साहित्यिक कलंकों ने पल्प फिक्शन की पहले से कमजोर गर्दन पर अपनी पकड़ और मजबूत कर दी। योग्य लेखक अपनी बेहतरीन रचनाओं को इस भीड़ में खोते देख रहे थे , पर कुछ कर नहीं पा रहे थे।
तभी साहित्य की इस डूबती नाव को बचाने के लिए सरदार अमरजीत सिंह मजीठिया नामक साहसी योद्धा ने मोर्चा संभाला। कहावत हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता , लेकिन अगर वह चना सरदार अमरजीत सिंह मजीठिया जैसा हो , तो परिणाम चौंकाने वाले होते हैं।
सरदार साहब ने अकेले ही ऐसा तहलका मचाया कि पल्प फिक्शन की दुनिया हिल गई।
इसी के साथ एक सिरफिरा क़ातिल भी अपनी कहानी लिखता रहता हैं।
‘प्रतारक’ इसी क्रांतिकारी सफर की कहानी हैं —कैसे सरदार अमरजीत सिंह मजीठिया ने साहित्यिक दुनिया में एक नया अध्याय लिखा और पल्प फिक्शन को नए जीवन की राह दिखाई।