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JAL JALA JAL

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समय की धारा में छिपी हिमालय स्थित एक रहस्यमयी भूमि–कल्प-तरु, जो ऋषियों और तपस्वियों का निवास रही है तथा जिसका विज्ञान इतना उन्नत था कि आज तक चीन और भारत सहित पूरा विश्व उसके अस्तित्व से अनजान था। वह भूमि एक प्राचीन श्राप से ग्रस्त है। दस सदियों पूर्व, राजा कल्प और तरु के अहंकार ने उन्हें युद्ध में झोंक दिया, जिससे क्रोधित ऋषि ने उन्हें पत्थर की मूर्तियों में बदल दिया। एक भविष्यवाणी कहती है कि पाँच बच्चों के कदम रखते ही श्राप टूटेगा, परंतु इसके साथ विनाश की संभावना भी है। अदृश्य जगत में रहने वाले एक तत्त्वज्ञानी ने दस सदी पूर्व की योजना को पूर्ण करने के लिए दून शहर के एक प्रसिद्ध स्कूल के चार बच्चों को ऋषियों के इसी अदृश्य देश में पहुँचा दिया।

अब पाँच बच्चे अनजाने में इस भूमि पर आ पहुँचे हैं, और उनकी मासूमियत एक खतरनाक यात्रा को जन्म देने वाली है। क्या वे श्राप तोड़कर भूमि को बचा पायेंगे? या फिर समय की धारा श्राप मुक्ति के साथ और कुछ भी रचेगी?

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Additional information

Weight 0.325 kg
Dimensions 22 × 14 × 2 cm
ISBN

978-81-976810-4-2

PAGES

282

AUTHOR

VINOD PRABHAKAR

Description

समय की धारा में छिपी हिमालय स्थित एक रहस्यमयी भूमि–कल्प-तरु, जो ऋषियों और तपस्वियों का निवास रही है तथा जिसका विज्ञान इतना उन्नत था कि आज तक चीन और भारत सहित पूरा विश्व उसके अस्तित्व से अनजान था। वह भूमि एक प्राचीन श्राप से ग्रस्त है। दस सदियों पूर्व, राजा कल्प और तरु के अहंकार ने उन्हें युद्ध में झोंक दिया, जिससे क्रोधित ऋषि ने उन्हें पत्थर की मूर्तियों में बदल दिया। एक भविष्यवाणी कहती है कि पाँच बच्चों के कदम रखते ही श्राप टूटेगा, परंतु इसके साथ विनाश की संभावना भी है। अदृश्य जगत में रहने वाले एक तत्त्वज्ञानी ने दस सदी पूर्व की योजना को पूर्ण करने के लिए दून शहर के एक प्रसिद्ध स्कूल के चार बच्चों को ऋषियों के इसी अदृश्य देश में पहुँचा दिया।

अब पाँच बच्चे अनजाने में इस भूमि पर आ पहुँचे हैं, और उनकी मासूमियत एक खतरनाक यात्रा को जन्म देने वाली है। क्या वे श्राप तोड़कर भूमि को बचा पायेंगे? या फिर समय की धारा श्राप मुक्ति के साथ और कुछ भी रचेगी?

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