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जीवनी को मैं जीवन-लेखन कहना चाहूँगा। जीवन भर जो भी पाया, खोया उसे काग़ज़ पर उतार देना। परंतु जीवनी के स्थान पर मैं इसे संस्मरण कहना पसंद करूँगा। वह भी इसलिए कि यह क्रम बद्ध नहीं है।
यह देखा गया है कि लोग जब भी अपने जीवन-संस्मरण के बारे में लिखते हैं, तो ज़्यादातर अच्छी-अच्छी बातों को लिखते हैं। लोग अपने शुक्ल पक्ष को ही प्रकट करते हैं। मैं भी कुछ हूँ, यह दिखाने पर ज़ोर अधिक होता है।
जीवनी में अपना महिमा मंडन किया जाता है। संस्मरण में ज्यों का त्यों उतर जाता है। फिर भी कहीं ना कहीं अपनी कमज़ोरी को छिपा दिया जाता है।
मैं यह लेखन किसी चर्चा या दिखावे के लिए नहीं कर रहा और न ही मैं इसकी पब्लिसिटी चाहता हूँ। यह केवल मेरे अपनों के लिए है। वे, जो जीवन में साथ के राही रहे हैं, हमसफ़र रहे हैं। वे, जो मेरी बात के, लिखने समझने के गवाह होंगे। बल्कि मैं कहूँगा कि यह हमारे जीवन संस्मरण हैं।
इस संस्मरण यात्रा में क्या देखा, भुगता और क्या पाया, जो भी हमारे पास है, जो भी घटा है, उसमें यह कोशिश की जाएगी कि उसका सही से वर्णन किया जाय। यह काम मैं 70 की उम्र में कर रहा हूँ, इसलिए बहुत संभव है कि इस दौरान बहुत सी बातें, घटनाएँ याद नहीं रही होंगी।
असल में ये जीवन की यादें हैं। अब जब यादें हैं, तो क्रमबद्ध नहीं हैं। जैसे-जैसे याद आता गया काग़ज़ पर उतरता गया।

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Additional information

Weight 0.385 kg
Dimensions 24 × 15 × 2 cm
ISBN

9788197739729

PAGES

406

AUTHOR

YATENDRA CHAUDHARY

Description

जीवनी को मैं जीवन-लेखन कहना चाहूँगा। जीवन भर जो भी पाया, खोया उसे काग़ज़ पर उतार देना। परंतु जीवनी के स्थान पर मैं इसे संस्मरण कहना पसंद करूँगा। वह भी इसलिए कि यह क्रम बद्ध नहीं है।
यह देखा गया है कि लोग जब भी अपने जीवन-संस्मरण के बारे में लिखते हैं, तो ज़्यादातर अच्छी-अच्छी बातों को लिखते हैं। लोग अपने शुक्ल पक्ष को ही प्रकट करते हैं। मैं भी कुछ हूँ, यह दिखाने पर ज़ोर अधिक होता है।
जीवनी में अपना महिमा मंडन किया जाता है। संस्मरण में ज्यों का त्यों उतर जाता है। फिर भी कहीं ना कहीं अपनी कमज़ोरी को छिपा दिया जाता है।
मैं यह लेखन किसी चर्चा या दिखावे के लिए नहीं कर रहा और न ही मैं इसकी पब्लिसिटी चाहता हूँ। यह केवल मेरे अपनों के लिए है। वे, जो जीवन में साथ के राही रहे हैं, हमसफ़र रहे हैं। वे, जो मेरी बात के, लिखने समझने के गवाह होंगे। बल्कि मैं कहूँगा कि यह हमारे जीवन संस्मरण हैं।
इस संस्मरण यात्रा में क्या देखा, भुगता और क्या पाया, जो भी हमारे पास है, जो भी घटा है, उसमें यह कोशिश की जाएगी कि उसका सही से वर्णन किया जाय। यह काम मैं 70 की उम्र में कर रहा हूँ, इसलिए बहुत संभव है कि इस दौरान बहुत सी बातें, घटनाएँ याद नहीं रही होंगी।
असल में ये जीवन की यादें हैं। अब जब यादें हैं, तो क्रमबद्ध नहीं हैं। जैसे-जैसे याद आता गया काग़ज़ पर उतरता गया।

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